Saturday, October 19, 2024

समर्पण का ताने और करुणा के बाने पर स्वदेशी कपड़ा बुनता एक ममतामयी संकल्प - त्रिंजन

 इस दीवाली पर्व पर रचना ,कला और कारीगरी के संघर्ष को अपनी उत्सवधर्मिता अर्पण करें 

समर्पण का ताने  और करुणा के बाने पर स्वदेशी कपड़ा बुनता एक ममतामयी संकल्प - त्रिंजन 





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२००५ में खेती विरासत मिशन की शुरुआत हुई और जिन किसानों ने उसकी नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , जो खेती विरासत मिशन के संघर्ष के साक्षी बने , जिन्होंने खेती और पर्यावरण को ज़हरमुक्त बनाने के लिए अपना बहुत कुछ दांव पर लगा दिया था उनमें मालवा क्षेत्र के गावों में कपास की खेती करने वाले किसान ही अग्रणी थे। इन में हरतेज सिंह मेहता , विनोद ज्याणी , अमरजीत शर्मा , स्वर्ण सिंह और हरजंत सिंह प्रमुख नाम थे। जिन्हें तब पागल भी कहा गया था। जब सब सरकारें , राजनीतिक दल , कृषि विश्वविद्यालय और अधिकाँश वैज्ञानिकों ने बी टी कपास को लाने के लिए जोर लगाया हुआ था तब यही किसान थे जो कह रहे थे " हम बी टी को अपने खेतों में नहीं आने देंगे , हम ज़हरमुक्त प्राकृतिक खेती ही करेंगे।" शुरुआत के दस वर्षों तक प्राकृतिक कपास की खरीद की कोई व्यवस्था न होने के कारण यह किसान अपनी ज़हरमुक्त कपास -नरमे को खुले बाजार में ही बेचने को मज़बूर थे।
फिर २०१५ में खेती विरासत मिशन ने कुछ किसानों की प्राकृतिक खेती से उगाई देसी कपास खरीदी। कुछ समय यह कपास ऐसे ही इधर उधर पड़ी रही। फिर कभी क्रांतिकारी अमनजोत कौर द्वारा प्रशिक्षित घरेलू जैविक बगीची के लिए खड़ी की गई टोली की नायकाओं सरबजीत कौर , परमजीत कौर और संतोष कुमारी के प्रयासों से जैतो के निकटवर्ती गावों में चरखे पर सूत कातने वाली महिलाओं को ढूंढा गया और उन्हें जैविक -प्राकृतिक कपास दी गई और ऐसे त्रिंजन की नींव पड़ी। अब सूत कात कर उसके ढेर हम खेती विरासत मिशन कार्यालय में रखते जा रहे थे। तब हमारे में से किसी ने नहीं सोचा था कि हम कभी प्राकृतिक कपास से हथकरघे का कपड़ा भी बनाएंगे। परन्तु शायद नियति किसी और के आने की प्रतीक्षा कर रही थी।
प्राकृतिक कपास के चरखे पर बने सूत से कपड़ा बनने का यह महत्वपूर्ण कार्य सम्भव हो सका २०१८ में रूपसी गर्ग के खेती विरासत मिशन से जुड़ने के बाद । ग्राम स्वराज की कल्पना को साकार करने की ललक से भरी हुई कुमारी रूपसी गर्ग संयोग से ही खेती विरासत मिशन में आई और मात्र एक वर्ष बाद वो बुनकरों और कारीगरों के बीच थी। २०१८ में कपड़ा बनाने के प्रयोग शुरू हुए और २०१९ में त्रिंजन का प्राकृतिक शुद्ध खादी का कपड़ा हमारे हाथ में था और हमने उसे पहनना शुरू किया।
जब त्रिंजन शुरू हुआ तो मात्र ६ किसान प्राकृतिक खेती में कपास ऊगा रहे थे और आज ३५ से ज्यादा किसान प्राकृतिक कपास की खेती कर रहे हैं। अनेक कतिय सूत कात रहे हैं और कितने ही बुनकर हथकरघे पर विशुद्ध प्राकृतिक खादी का कपड़ा बुन रहे हैं।
-२-
कई मित्रों ने त्रिंजन का प्राकृतिक कपड़ा देखा होगा। यह कपड़ा ज़हरमुक्त तो है ही - यह पूर्णतः देसी , गैर बी टी और प्राकृतिक खेती से उगाई कपास से ही बना है। यह कपड़ा कोई साधारण कपड़ा नहीं है। इस कपड़े को बनाने के पीछे एक मौन साधना है, एक निःस्वार्थ सेवा की भावना और ग्राम स्वराज के स्वप्न को साकार करने के लिए अपने सुख और भौतिक जीवन की सांसारिक आकाँक्षाओं को होम कर देने की 'सरफरोश तमन्ना ' है। यह पंजाब में बुनकरी की कला , उसकी कला और तकनीक को सहेजने , उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प है। त्रिंजन का कपड़ा बुनकरों को सम्मान देने , उनकी ज्ञान परम्परा को प्रतिष्ठा देने और प्राकृतिक खेती से कपास पैदा करने के विकट चुनौती को स्वीकारने वाले किसानों का हाथ थामने की , उनके सहयोगी बनने की भीष्म प्रतिज्ञा भी है।
त्रिंजन का कपड़ा अर्थात पंजाब , हरियाणा और राजस्थान के कपास क्षेत्र को ज़हरमुक्त बनाने के भीषण संघर्ष का एक रचनात्मक आयाम है। त्रिंजन कोई उद्योग नहीं है , पैसा कमाने के लिए शुरू किया गया कोई व्यापार नहीं है यह भारत के समकालीन स्वदेशी आंदोलन का व्यवहारिक रूप है। इस के लिए अपने जीवन के सुख -सुविधा और आधुनिक शिक्षा ले कर भी किसी स्वर्णिम भविष्य के 'कैरियर ' की आहुति दे रही है हमारी रूपसी गर्ग। यह युवती एक स्वतंत्रता सैनानी की भांति सब कुछ दांव पर लगा कर ग्राम स्वराज का यह प्रयोग करने को कृतसंकल्प है। उसने अपनी ममता त्रिंजन पर ही उंडेल दी है। वह अकेले ही एक साथ ५ -६ लोगों का कार्य कर रही है। अपनी नींद , भोजन , आराम और रुचियों को भस्म करके एक तरफ किसानों से कपास की खेती के मुद्दों को सुलझाती है और कपास की खरीद को सुनिश्चित करने , किसानों को बाजार भाव से अधिक दाम देने के लिए प्रयास करती दिखती है तो दूसरी तरफ बुनकरों और कारीगरों की समस्याओं , उनकी आवश्यकताओं की चिंता भी करती है। फिर बुनकरों में हुनर के विकास एवं ओर ज्यादा अच्छे कपड़े की बुनाई के लिए डिज़ाइन और हथकरघे -खडी में निरंतर सुधार के लिए भी परिश्रम कर रही है। किसी सुदूर राज्य में अनुभवी एवं प्रतिष्ठित खादी एवं हथकरघे की पुरानी संस्था से तालमेल करना हो अथवा किसी बड़े तकनीकी आधुनिक संस्थान से सीखने के लिए कोई सहकार्य सुनिश्चित करना। सब कुछ के पीछे रूपसी ही रहती है। तीसरी तरफ चूँकि अभी सूत कातने वाले लोग कम हैं सो सारी की सारी कपास अभी चरखे से नहीं काती जा सकती , इसलिए किसी उद्योग से तालमेल करके मशीन पर प्राकृतिक कपास का ज़हरमुक्त कपड़ा बनवाने के लिए भी अपनी पूरी जान लगा देती है। कपास भेजना , उसका धागा बनवाना , फिर कपड़ा बनवाना , कपड़े का डिज़ाइन तय करना। उसका हिसाब -किताब रखना। चौथी तरफ इस कपड़े की बिक्री के लिए लोगों से बात करनी , जगह -जगह जा कर स्टाल लगाने , स्वयं जा जा कर प्रदर्शनी लगानी। काम यही खत्म नहीं होता। कपड़ों की प्राकृतिक रंगाई करवानी , लोगों को सुरुचिकर कपड़ा पहनना पसंद है सो अनेक जगह से प्रिंट और छापा वाला कपड़ा बनवाना। और अब त्रिंजन के कपड़े से रेडीमेड कुर्ते-पैजामे , सलवार-कमीज़ , शर्ट-पैंट और अन्य तरह के रेडीमेड कपड़े बनवाने लिए कितनी कितनी जगह बात करनी। इतना ही नहीं आज त्रिंजन एक बुनकर पाठशाला भी चला रहा है। जिसमें नए बुनकरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। फ़िलहाल यह त्रिंजन पाठशाला एक छोटे भवन में चल रहा है। जहां मात्र ६ ही हथकरघे लगे हैं। पाठशाला के विस्तार का भी प्रयास हो रहा है। रूपसी के योग्य नेतृत्व में त्रिंजन अपने किसानों , कारीगरों और बुनकरों के लिए स्वयं साधन जुटा रहा है और अपना प्रशिक्षण ढांचा खड़ा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। जैतो में बुनकरों के लिए " जीवन शाला " का निर्माण कर रहा है, जहां बुनकर पाठशाला को स्थानांतरित किया जाएगा । भवन निर्माण की निगरानी और हिसाब-किताब हमारी प्रिय रूपसि का ही दायित्व है।
-३-
इतने परिश्रम के बाद भी सेनानी रूपसी के काम खत्म नहीं होते। उसकी प्रतिदिन की दिनचर्या में चरखा चलाना तो है ही , वो घंटों-घंटों खादी के तौलिए जो बन कर आये हैं , उनके फ़ालतू धागों को काटना और किनारों के बमबल बना कर उन्हें अंतिम रूप बिक्री के लिए अपने हाथ से तैयार करती है। और फिर उन तोलियों को प्रेस किया जाता है। कभी कोई सहयोगी मिल जाये तो ठीक है अन्यथा रूपसी स्वयं ही यह परिश्रम साध्य कार्य करती है। उसका यह समर्पण देख मैं उसके प्रति श्रद्धा से भर जाता हूँ। अपने उद्देश्य के प्रति रूपसी की लगन देख कर मुझे अनायास ही कुछ महिलाओं की याद आ जाती है जिनके प्रति मैं गहरी श्रद्धा रखता हूँ। सुनीता नारायण , डा वंदना शिवा और कविता कुरुगंटी को मैंने कुछ हद तक निकट से प्रचंड परिश्रम करते देखा है और अब रूपसी को देख कर मेरी वो अवधारणा और भी दृढ़ हो जाती है है की हमारी मातृ शक्ति अपने स्वभाव , प्रकृति और संस्कार से पर्यावरण की संरक्षक है। तभी तो चिपको आंदोलन के लिए बलिदान देने वाली अमृता देवी बिश्नोई होती है तो हिमालय के चिपको आंदोलन की संस्थापक गौरां देवी होती है।
कभी कभी यह भी लगता है कि कुछ अर्थों में रूपसी का संघर्ष इन महान महिलाओं से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। रूपसी वास्तव में एक योद्धा महिला है। पंजाब में पटियाला जिले के छोटे से गांव शम्भू तेपला के साधारण मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी और दसवीं तक उसी गांव के सरकारी विद्यालय में पढ़ने के बाद अम्बाला के एक महाविद्यालय से बायो टेक्नोलॉजी में बी.टेक. करने के बाद हैदराबाद के प्रतिष्ठित सेन्टर फॉर सेलुलर एण्ड मॉलिक्युलर बाओलोजी ( सी सी एम बी ) में जूनियर रिसर्च फेलो बनी। सी सी एम बी हैदराबाद में काम करते करते एक दिन रूपसी ने टीवी पर एक ऐसा साक्षात्कार देखा-सुना जिसने उसके मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला। जो टी वी से निकल कर उसके भीतर की चेतना और चिन्तन प्रक्रिया से एकाकार ही हो गया। मेरे लिए भी गुरु का कार्य करने वाले सुप्रसिद्ध लेखक , भारतीय ज्ञान परम्परा के महान साधक , महात्मा गाँधी के मूल्यों को अपने दैनंदिन जीवन में उतारने वाले भाई अनुपम मिश्र का यह साक्षात्कार एनडीटीवी के प्राइम टाइम में लिया था पत्रकार रवीश ने। इस साक्षात्कार में अनुपम भाई द्वारा व्यक्त भावों और सोने के गहनों में हीरे -मोती के मानिंद जड़े उनके शब्दों ने रूपसी में सी सी एम बी की प्रयोगशाला की कोठरियों से बाहर हमारे देश -हमारे गावों में फैले जीवन की ऊंचाई - गहन गहराई को मापने के लिए व्यथित कर दिया। अपने देश , अपने जीवन और उसकी सार्थकता को नए सिरे से तलाशने के लिए उसके अंतर में एक अग्निशिखा प्रज्वलित कर दी। भाई अनुपम मिश्र के शब्दों ने रूपसी को गावों की ओर चलने और अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए इतना प्रेरित किया कि उसने सी सी एम बी, हैदराबाद छोड़ने का निर्णय कर लिया। उसने अपने जीवन की दिशा गावों में सर्वदूर व्याप्त समाज शास्त्र , लोक विज्ञान , कला और उत्सवपरता की और मोड़ दी। रूपसी ने सीसीएमबी , हैदराबाद छोड़ने के बाद बैंगलोर के अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ( ए पी यू ) से मास्टर्स इन डेवलपमेंटल स्टडीज़ में प्रवेश लिया और वहीं महात्मा गाँधी की लिखी छोटी सी पुस्तिका "ग्राम स्वराज" रूपसी के हाथ लगी और उसके आगामी जीवन में गाँव , उनकी कला , उनके कारीगर और सादगी और भी ज्यादा गहराई से स्थापित हो गए। ए पी यू में ही उसे गाँधी जी का बॉक्स चरखा भी अपनी एक सहपाठी के पास मिला और वो उस पर हाथ आजमाने लगी। अब वो चरखा चलने वाली और गाँधी जी के ग्राम स्वराज को साकार करने के स्वप्न देखने लगी। उसने भारतीय कला परम्परा के साधक श्री रवींद्र शर्मा गुरु जी की वार्ता सुननी समझनी शुरू की और स्वयं को उसी विचार और कल्पना को समर्पित करने का मन बना लिया।
जब उसके तमाम सहपाठी कैम्पस प्लेसमेंट से बड़ी बड़ी कम्पनियों में या सरकारी संस्थानों में भारी भरकम वेतन वाली नौकरियों में जा रहे थे तब उस प्रवाह के विपरीत उसने बिना वेतन के खेती विरासत मिशन में काम करने का दुसाहसपूर्ण निर्णय लिया। त्रिंजन का दायित्व सम्भालने के बाद से रूपसी ने स्वयं को पूरी तरह कला और कारीगरी के लिए झोंक दिया। आज बहुत जगह त्रिंजन की बात होती है। त्रिंजन और रूपसी के कारण खेती विरासत मिशन और मुझे भी सम्मान मिलता है तो रूपसी पर गर्व होता है। त्रिंजन का समूचा प्रकल्प , बुनकर पाठशाला , निर्माणाधीन जीवनशाला , देसी प्राकृतिक कपास से बना विशुद्ध खादी का कपड़ा रूपसी की अनथक साधना का मूर्त रूप है। त्रिंजन की नन्ही सी कोंपल को रूपसी ने अपने खून , पसीने और आंसुओं से सींच कर एक बड़ा पौधा बना दिया है। जिसमें विराट वृक्ष बनने के सम्भावना आज सभी को दिखने लगी है। हमारे आसपास के किसान , बुनकर , कारीगर , खेती विरासत मिशन के हमारे पुराने साथी , शुभचिन्तक और सहयोगी आज रूपसी और त्रिंजन की तरफ बड़ी आशा से देख रहे हैं और रूपसी का , उसकी सहयोगी टोली में शिंदर कौर , गुरमीत कौर , रमनदीप कौर , स्नेह , रेखा रानी , राजपाल कौर , गुरविंदर शर्मा , हरनेक सिंह सभी आपने अपने ढंग से इस साधना में योगदान डाल रहे हैं। यह सभी रूपसी के सहयात्री हैं जो त्रिंजन के भविष्य को ले कर आशान्वित हैं।
त्रिंजन के वर्तमान भव्य बनते जा रहे स्वरूप में २०१९ में त्रिंजन के शुरूआती दिनों में रूपसी के दाहिने हाथ के रूप काम कर चुके हमारे युवा साथी सौरभ सैनी के अनथक परिश्रम का उल्लेख भी महत्वपूर्ण है। सौरभ ने वास्तव में त्रिंजन को अपने जीवन , अपनी भावनाओं और आकाँक्षाओं में ही उतार लिया था. फिर प्रबंधन से ले कर कड़ी मेहनत वाली मज़दूरी सरीखा कोई काम हो सभी को उसने हस किया. वह रूपसी का अनन्य एवं विश्वस्त सहयोगी बन कर त्रिंजन को स्थापित करने में जुटा रहा।
त्रिंजन की इस सृजन -यात्रा में उल्लेखनीय भूमिका निभाने में और त्रिंजन के स्वप्न को साकार करने के लिए अपना समय और साधन झोंक देने वालों में ढिंगावली गाँव के प्राकृतिक खेती किसान सुरेंद्र पाल सियाग , कोटकपूरा के जगतार धालीवाल और चैना गाँव के गोरा सिंह बराड़ की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सुरिंदर पाल जी रूपसी के साथ त्रिंजन का दूसरा मुख्य पहिया बन कर महान परिश्रम कर रहे हैं। फिर प्राकृतिक कपास किसान हरतेज सिंह मेहता , विनोद ज्याणी , कंवरजीत बराड़ , स्वर्ण सिंह, हरजंत सिंह , जय पाल पूनिया के जीवट और बी टी मुक्त प्राकृतिक देसी कपास उगाने की प्रतिबद्धता का उल्लेख भी महत्वपूर्ण है। इन किसानों की एक जिद के कारण ही त्रिंजन लगातार अपनी यात्रा में आगे बढ़ता रहा। आज त्रिंजन पंजाब में हथकरघे पर देसी खादी बुनने का प्रतीक बन गया है। यह ग्राम स्वराज , स्वदेशी और कला - कारीगरी का संरक्षण केंद्र बन गया है। इसे और सहयात्रियों की आवश्यकता है। त्रिंजन को सभी सुहृद और प्रकृति में श्रद्धा रखने वाले महानुभावों के स्नेह , आशीर्वाद और उदार हृदय से सहयोग की नितांत आवश्यकता है। रूपसी की , उसके बुनकर सहयोगी-सखियों और त्रिंजन के लिए प्राकृतिक कपास उगाने वाले खेती विरासत मिशन के किसानों की इस रचनात्मक सृजन -साधना में सहयोगी बनना हम सभी का कर्तव्य है।
-४-
दीपावली आ रही है। हमारे में से बहुत से लोग नए कपड़े खरीदेंगे। आज त्रिंजन के पास बड़ी मात्रा में प्राकृतिक विशुद्ध खादी का कपड़ा बिक्री के लिए पड़ा है। क्या आप अपने घर, दुकान और कार्यालय के परदे , चादरें , तौलिए और अपने पहनने के लिए त्रिंजन के ज़हरमुक्त , हथकरघे पर बने कपड़े खरीद सकते हैं ? आपकी दीपावली की खरीददारी प्राकृतिक खेती को समर्पित किसानों , पारम्परिक कला और बुनकरी की धरोहर सहेजने को प्रतिबद्ध बुनकरों की सहायता कर सकती है।
आइए ! इस दिवाली की खुशियों को त्रिंजन की साधनारत टोली से बाँटें।

Saturday, February 1, 2014

Bayer CEO started Medical Apartheid: Denies its Cancer medicine to Indians

Bayer CEO started Medical Apartheid: Denies its Cancer medicine to Indians
MNCs are only for ruthless profits regardless of any ethic, morality and human value. The recent statement made by Mr. Marijn Dekkers, CEO of agro-chemical and pharmaceutical giant Bayer precisely told that these Corporations are meant for extracting money and extortion at any cost.
"We did not develop this medicine (Nexavar) for Indians," ?Marijn Dekkers said at a little reported pharmaceutical forum last month, according to the January 21st edition of Businessweek.
"We developed it for western patients who can afford it," Dekkers said, and called the Indian regulator's action "essentially theft".
Being among the largest Chemical Company in the world and having huge business in India Bayer is into selling and manufacturing human and animal drugs, agro-chemicals (Pesticides) and material science. One of its products ‘Nexavar’ used to treat liver and kidney cancer is highly expensive and India’s Controller General of Patents has allowed a local drug manufacturer to produce its generic copy in India.  It is noteworthy that Bayer Corporation has obtained a patent in India in 2008 for Nexavar which cost Rs. 2.8 lakh for a month’s dosage of pack of 120 tablets. On March 9, 2012, the Controller of Patents, Mumbai, granted the first-ever compulsory licence to local Drug Company Natco to make ‘Sorofenib Tosylate’, a generic version of Bayer’s high-priced anti-cancer drug Nexavar. Natco was told to sell the pack at Rs. 8,800 which is almost 97% discount to the original selling price of the Bayer product in India. No MNC will like any court order disallowing them from making unethical profit of more than 30 times than what that drug can be made available for.
Now one can easily understand reason behind Mr. Dekkers irritation.
Making this statement Bayer is openly admitting the drugs they are developing are deliberately going to be rationed only to the wealthiest patients. It is clear-cut case of concentration of wealth, resources and services for Super-rich Class. It is the system which throws out those who can't afford to pay.
Now look at other Bayer businesses in India, its agro-chemical (Pesticides) division Bayer Crop Science India Ltd, is leading pesticide manufacturer roughly occupying 20% market share in total pesticide market of Indian agriculture. In Punjab they hold major market share in pesticide sale. One of the pesticides Bayer was selling until 2010 was Thiodan   (Endosulfan) which they shelved  off after years of global campaigning by the PAN Network, which is linked to autism, birth defects and male reproductive harm. Later on Bayer showcased as if the decision was taken as a responsibility to public safety while the truth is well understood.
Bayer is primary producer of “Imidacloprid” neonicotinoid group of pesticides used as foliar spray and seed treatment for controlling sucking insects in India and world over. Neonicotinoid group is considered to be the prime reason for honey bee colony collapse disorder (CCD) and facing 3 year ban in Europe beginning from Dec-2013 after a law suit filed by local bee keepers. In India Imidacloprid is a cash cow for Bayer’s pesticide business generating huge revenues, so forget about Bayer issuing any self-imposed ban on similar ground to safeguard honey bees in India? Bees are a far away case when Mr. Dekker feels no different for humans.
Recently Yellow-rust outbreak alarm was waved off by Agri-Department of Punjab and Haryana (which has become an annual ritual of January month). “Tebuconazole” was one of the recommendations suggested by Agri-Scientists on wheat crop for managing Yellow-rust. Tebuconazole is a Bayer manufactured fungicide with brand name “Folicur” and Bayer being its prime producer. We don’t know how sure recommending agencies are about the effectiveness of this fungicide on Yellow-rust but farmers do surely recognize one thing in common about skin sensitisation effect while they get exposed to Tebuconazole. Further inquiring on Tebuconazole popped up the fact that it is listed as a possible carcinogen(cancer-causing) in United States Environment Protection Agency Office of Pesticide Programs carcinogen list with a rating of C(possible carcinogen). We hope this not to be true and if so than Bayer should sue Wikipedia for flagging all this miss-information about Tebuconazole. But if it comes out to be true than this poses serious concerns and requires detailed studies by Agri-Scientists before bluntly recommending and exposing wheat crop to carcinogenic pesticides in state like Punjab which is already burdened under Cancer threat.
Here we should keep in mind that Tabuconazole is the same pesticide with different formulation used for wheat seed treatment under the brand name Raxil which got unwanted publicity when Former Managing Director of the Haryana Seeds Development Corporation (HSDC) Mr. Ashok Khemka questioned its efficacy and alleging the purchase was made at exaggerated rates. His demand of audit was rejected on misuse of Rashtriya Krishi Vikas Yojana funds to purchase the fungicide at rates much higher than which it was supplied to other government agencies by Bayer Crop Science Ltd.
Bayer plans to attain leadership position in pesticide market in populous countries like India while refusing the same population from cancer curing lifesaving drugs. Sufficient studies are done predicting food, air and water toxicity due to over pesticide usage being the prominent precursor of cancer. Here India should stand by the decision for allowing generic version of cancer curing therapy giving strong message to people like Mr Dekker so as to think before making such derogatory remarks on Indian population.
The question which is arising from this racist remark and colonial mind-set is, “should we allow these money minded Corporate to operate this way?”
Or reading between the lines Mr Dekker’s is indirectly advising Indian agriculture community to stop using pesticides (one among the prime causes of cancer) because cancer curing drugs are not meant for people of India. Thank you Mr. Dekker for this statutory warning, now the decision lies with farmers of India.
      



Saturday, November 23, 2013

An Protocol to grow Wheat in Organic / Natural Farming in Punjab

Scoping Comparable Yields, Rice-Wheat Cropping System, With and Without Agro-Chemicals, Punjab, India

An Experiment Protocol

This experiment is based on the discussion of  farmers associated with Kheti Virasat Mission and practicing Organic / Natural Farming in Punjab under the Chairmanship of eminent Agriculture Scientist Dr O P Rupela. It is focused on yield maximization without agrochemicals and does not have any control treatment. On an average most chemical farmers harvest above 18 Q per acre of wheat and 26 Q per acre of rice. If organic farmers achieve yield levels similar to these, it would be considered a success. Following package of practices are proposed for this experiment.

Present focus: Wheat crop of 2013-2014 season (part of the Experiment for rice season will be developed after learning lessons from the on-going rice season)

Wheat will be sown after the on-going Rice. Seed drill with one foot row to row spacing will be used. If one foot space is difficult, we can use the drill that has arrangement for row to row of 7 inches – to get spacing of 14” by closing alternate hole in the seed drill.  Wheat will be sown along with Chana as intercrop. It is possible to sow Chana along with wheat by separating the last hole using a wooden ply. This will allow paired row of Chana, after every 8 (in the case of 9 row drill) or 12 rows of wheat (in the case of 13 row drill). Also, we need to ensure draining of excess water in the field by making shallow ridges such that wheat is on top of ridge. This can be achieved using another ‘tine’ between every two lines of seed-drill. More details on the suggestions for sowing wheat follow. NoteIn case you have question/clarification, please call Mr Gurpreet Singh Dabrikhana at 9915195062.

Select a normal field (without the problem of Murk, salinity, flooding etc.) for the experiment. Select a suitable Seed drill that allows row to row spacing of one foot. Wheat will be intercropped with Chana which can be sown by the same seed drill - by separating the last hole (on right or left – whatever convenient) using a wooden ply. This will allow paired row of Chana, after every 12 rows of wheat (there will be 6 rows of wheat on starting side of the tractor). Also, we need to ensure draining of excess water in the field by making shallow ridges such that wheat is on top of ridges. This can be achieved by using another ‘tine’ between every two lines of seed-drill.
More details on the different suggestions follow.

Seeds – Selection, Procurement and Treatment – required before sowing:
i)     Obtain seeds of the two wheat varieties chosen by you – Importantone of the two varieties should be same as in the other fields of the farm
ii)   Seed rate: Wheat: 20 kg per acre and Chana – 8kg per acre. Important – more seeds means dense planting and we do not need dense population. Ideally we need plant to plant spacing also as one foot – both for wheat and chana. But suggested seed rate seems fine.
iii) We would need 250 g seed each of Metha (Fenugreek) and Alsi (Linseed) per acre for mixing with the entire 20kg of Wheat seeds. Mix about 50g seeds of Dhania with entire Chana seed. This may help in plant protection. NoteAdd these seeds in the seed drill, just at sowing.
iv)          Prime the seeds of the selected Wheat and Chana varieties. Method of priming is given in Appendix I. It may be noted that priming should be done about two days in advance of sowing to avoid last-minute tension.
Most Important:  Test germination percent of all the seeds (particularly the major crops wheat and Chana in this case). See Appendix II for the method.

Land preparation and sowing:
v)            It is hoped that rice will be harvested by combine by early November. Cut the stubble at ground level by using Reaper.  Note: We need two trolley loads of Living Compost for one acre area of the experiment. See Appendix III for the method of preparation.
vi)          Cut the standing stubble by using reaper (to mow it down at ground level), remove the loose plant biomass and collect it on two ends of the field by using a ‘Rake’ (a Jugad to be designed by you – it is essential for the future health of the farm).
vii)        Prepare the field (after irrigation, if needed), when soil is in Vattar, as normally done for sowing Wheat/Chana.
viii)      Apply two trolleys of ‘Living Compost’ per acre and about 20kg to 40kg of Ash (per acre) on soil surface, separately. Note‘Ash’ being less in quantity will require more care for uniform application, therefore do not mix it with Living Compost.
ix)          Sow the field using a seed drill to achieve 12” row to row distance and a sowing arrangement – 2 rows of Chana after every 12 rows of wheat. Within a row – ideally about 20 cm or 8” from plant to plant. Do following modifications at the time of sowing.
a.      Adjust the required pora at 12” (or one foot) distance.
b.      Please ensure that we do not sow more than 20kg wheat seed per acre and not more than 8kg seed of Chana per acre.
c.       Make changes in the seed box such that last hole on one end receives Chana seed.
d.      Attach a heavy duty tine with broad base (about 5” wide) between every two sowing tines – about 4” below ground level such that it should result in a light furrow between every two rows.
x)            One would get 6-rows (at start of drill) or 12 rows of wheat (in general) followed by 2-rows of Chana if we are using a seed-drill with 6 tines in front and 7 in rear row. Other row arrangements are feasible and OK, but choice is yours. My choice is 8 rows Wheat and 2 rows Chana. For example with a seed-drill of 4 tines in front and 5 in rear – we would get this combination.
xi)          Sow one row each of Sarson on all four sides of the field. This will serve as ‘Trap Crops’ for some insect-pests.
xii)        Soon after sowing, apply all the loose plant biomass back to the whole field manually to achieve at least 4” thickness. Note: (a) All these crops stated above have been noted to emerge out of this thickness of rice straw, (b) Never use broad leaves of trees such as Poplar as surface mulch because they can obstruct emergence. Broad leaves of any crop or trees can be used but only after crushing.

Weed management: One manual weeding at around 30 days, if needed, is recommended. After 30 to 40 days, if weeds are more, use ‘bioherbicide’ (see Appendix IV) - a need based action. Important: Bioherbicide can only be applied by using a Chatri sprayer taking care that no drop falls on base of the wheat-Chana etc. grown in the planted rows.

Water management: We should not irrigate, if the field is moist at surface. Need of irrigation of wheat can be judged by its wilting. If it is wilting during sunny hours, say at 2 PM but recovers at late evening hours – say at 6 PM, it should not be irrigated. But if it remains wilted at 6 PM, it should be irrigated. It is hoped that, with surface mulch, wheat will need about 3 to 4 irrigations only. Important: Apply 20L urine with every irrigation. It can be slowly poured into water channel as the water enters the fieldNote: Chana should not be irrigated, as far as possible. Chana rows can be blocked at ends so that water does not enter in the Chana rows.

Plant protection and nutrition: see Table 1.

Preparing for Rice crop (of May/June 2014): Broadcast 10kg seed per acre of the “Aurogreen” crops (see names of seeds/crops and method in Appendix V) just before last irrigation of wheat, say in March 2014.

Harvesting wheat: When the crop is almost ready for harvest, identify three representative spots each for Wheat and Chana. Cut the plants from one meter long three rows of Wheat and one meter long two rows of Chana, at ground level, using sickle. Sun-dry the bundles for one week. Thresh the bundles manually/separately to separate grains from rest of the plant biomass. Add the 2-types of grains in separate strong paper bags and the other plant parts in separate gunny bags of jute or cloth. Take their weights separately and record the yield data (both for grains and for biomass) in the ‘Field Book’ with the farmer. Attention: Mr Gurpreet Dabrikhana.

Harvest Chana manually before harvesting wheat by combine (hopefully by mid April). Record the number of gunny bags of grains of the two crops harvested from the whole of one acre. Also, take weight of each bag, if possible, and record data in the ‘Field Book’. Attention: Mr Gurpreet Dabrikhana.

Table 1: Different types of sprays for enhancing plant nutrition and plant protection
S. No.
Applicant
When to Use (days after sowing–DAS)
Remarks
1.
Gurjal Amrit
30, 70 DAS
Promotes roots and shoot growth, see Appendix VI for method of preparation
2.
Pathi Ka Pani
50, 100, 150 DAS
Promotes plant growth, supports flowers, Appendix VII for method of preparation
3.
Khatti Lassi
40, 74, 110 DAS
Against fungi, Appendix VIII for method of preparation
4.
Fertilizer, as a pesticide
90, 160
Against aphids , Appendix IX for method of preparation




CautionNo spray should be applied during flowering








List of Appendices
Append. No.
Title
Page no.
I
Special Aurogreen for Broadcast in Standing Rice, Guar or Wheat
10
II
Method of urine application – a source of nitrogen
10
III
Converting Farm Yard Manure (FYM) into Living Manure
11
IV
Seed Priming
12
V
Testing Germination of Seeds
13
VI
Urine and Khaadi Soap Mix as a Bioherbicide
13
VII
Method of Converting Oil-cake to Living Oil-Cake
13
VIII
Method of ‘Paata’ to rice
14
IX
Method of Making Gur-Jal-Amrit
14
X
Extract of Dry Cowdung (Paathi-Da-Paani)
15
XI
Method of Making Butter Milk as Pest Manager
15
XII
Method of Making Herbal Extract
16
XIII
List of different inputs/activities for year 1
17-18
XIV
Application of ‘Ash’ as source of crop nutrients
20





Appendix I
Seed Priming*
Materials Needed:
Seeds of required crop in required quantity, Jeevamrit (without dilution)-sufficient to soak the seed, one kg powdered and sieved lime (or ‘Chuna’, widely used for whitewash of houses, do not use any modern/branded white-wash) for every 100kg seed.

Method:
1.      Take high quality clean seed from which chaff and broken seeds have been removed.
2.      Put the seed in a suitable size container and add Jeevamrit such that seed is fully dipped in it.
3.      Soak the seeds of a given crop for the period suggested in the table below.  Note: Number of hours of soaking is very important and it varies from seed to seed and is given below for some seeds for which experiments have been done. For seeds of other crops, farmers are encouraged to develop their own experience.
4.      Drain the excess ‘Jeevamrit’.
5.      Spread the seeds on a gunny sheet. Sprinkle it with required quantity of powdered/sieved lime. Dry the seeds in shade. They are now ready for sowing.

S. No.
Crop
Hours of soaking
1.
Rice
14
2
Wheat
6
3
Chana
4
4
Jawar
5
5
Bajra
5
6
Moong, Urd
3
7


Note: Sowing be completed soonest possible. The primed seeds should not be stored for more than two days.
    The method is based on the publication of Harris D.. et.al. 1999. Experimental Agriculture 35:15-29; Musa,A.M. et.al. 2001. Experimental Agriculture 37: 509-521.
…………………………



Appendix II
Testing Germination of Seeds

1.      Take approximately 1000 seeds.
2.      Soak them in water for about four hours (20 hours in the case of rice).
3.      Drain the excess water and line-up the seeds on short side (width) of twin or double sheet of a newspaper. Wrap the seeds in the newspaper, in the form of a tube.
4.      Fold the newspaper tube and put in a polythene bag.
5.      Add small quantity of water in the bag and drain it after few minutes so that newpaper gets moist (not dripping wet).
6.      Drain the excess water again after about 30 minutes.
7.      Keep the polythene bag in a room for four days, if it is summer/rainy days, and for seven days, if it is winter.
8.      Take out and straighten the folded newspaper tube, unfold the paper so that the seeds are visible.
9.      Count the total number of seeds and record in the ‘Field Book’
10.  Count the germinated seeds and record in the ‘Field Book’. Calculate the percent germination.
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Appendix III

Method of Preparation of Living Manure and its Use*

This is a method of adding value to the farm-yard-manure (FYM). Most of the agricultural scientists and agricultural research institutions measure value of FYM in terms of quantity of nitrogen (N), phosphorus (P) and potash (K) in it. Cattle dung and FYM have been noted to contain microorganisms of all the six types of functional groups of microorganisms – nitrogen fixers, phosphate solubilizers, cellulose degraders, plant-growth promoters, antagonists of disease-causing fungi and entomopathogens. Therefore the real value of FYM is in the population and diversity of agriculturally beneficial microorganisms it contains and not in the concentration of NPK. Its biological value can be further enhanced by the following method.

In the past about two years, we have been suggesting farmers in Punjab through a local NGO – Kheti Virasat Mission (KVM) to enhance the value of manure/FYM by further enriching population of agriculturally beneficial microorganisms before its actual use.

NoteWe are not talking of ‘compost’ prepared by using some standard procedures. For example, Nadep compost or Vermicompost.

Materials needed
1.      Half trolley soil, preferably of an organic field.
2.      Half trolley farm-yard manure (FYM), as prepared by most farmers in villages.
3.      100kg oil-seed cake of an edible oilseed, eg. Mustard, Groundnut, Sunflower, Safflower etc.
4.      30kg Gur (Jaggary) – old batch, so that its cost is less. Notemolasses, if available, can be used in its place
5.      5-basket full of soil from under canopy of a big Banyan tree
6.      100L of Gur-Jal-Amrit (concentrate)

Method of preparation of Living manure 
1.      Break all clods in the farm-yard manure (FYM) and soil separately.
2.      A day before this activity of making living manure:
(a) spread the oilseed cake on a plastic sheet and sprinkle it with 10-times diluted Gur-Jal-Amrit. Mix the contents once every about one to two hours till the Gur-Jal-Amrit gets soaked fully and cake becomes friable, (b) Soak Jaggary (or molasses) in a suitable container having about 100L of 10-times diluted Gur-Jal-Amrit – it would need mixing with a stick so that it gets suspended well and fully.
3.      Identify a suitable place for preparation of Living Manure in the field. Ideally, one should select area under shade of a tree. But any area is okay, so far as we can save the material from excess of rain and Sun. Spread the manure, say on an area of about 20 feet long and about 10 feet wide. Break the clods.
4.      On its top, uniformly spread about half trolley load of soil (preferably from a field where we are going to use the product. Break the clods, if present. After this, spread the moistened and friable oilseed cake, followed by 5 basket full of soil from under a Banyan tree.
5.      Now uniformly sprinkle about all the Jaggary water suspension.
6.      Using a spade mix all the contents of all the layers thoroughly. Add diluted Gur-Jal-Amrit, if needed, taking care that the mixture remains friable. If the mixture is dry and Gur-Jal-Amrit  gets finished, normal irrigation water can be used in its place. NoteIt will take at least 2 to 3 rounds of mixing before the contents get mixed thoroughly.
7.      After mixing, set the contents in 3 feet wide and one foot high bed. Length of the bed can be decided by the space one has. It can be a single length or in several beds, until the contents are finished.   
8.      Cover the beds with moist plant biomass as surface mulch. It can be crop residues, fallen leaves of trees etc. whatever is handy on a farm. 
9.      Keep the surface mulch moist by sprinkling water or diluted Gur-Jal-Amrit (if some still remains unused).
10.  At about day 5, remove the surface mulch and mix the contents. Sow all the beds with Aurogreen (see Appendix .. for details). Cover the seeds with about one inch layer of the same soil and cover again with surface mulch.
11.  If needed, the product is ready for use from day 15, but it is recommended keep the unused beds intact as long as feasible. NoteGrowth of root system of the diverse crops would further increase population of agriculturally beneficial microorganisms of different types. It is recommended to use the contents fully within 6-8 weeks of preparation.
12.  If the material is not used in 6-8 weeks, fill it in empty bags of fertilizers or of cement – whatever is available. Note: (a) Do not use jute bags because they would also get manureed and become weak with time, (b)  store the bags in shade, cover them with about 4” layer of foliage or crop residues, and keep them moist (not wet) by sprinkling water, until use.

Rate and method of using Living manure: 
1.      Apply two trolley load of the product in year one, one trolley in year 2 and there is no need to use it after this.
2.      This product should not be applied to dry field eg. at land preparation. Instead it should be sprinkle-applied just before sowing.
3.      For best results the soil-surface should be covered with about 4” thick surface mulch of crop residues.

Important: Innovation in mechanizing the preparation process are encouraged.


................



Appendix IV

Urine and Soap Mix as a Bioherbicide*
Materials
1.      Cow urine              = 15L [Note: it does not matter. if it is fresh or old]
2.      Soap powder         = 10 g per 15L
3.      Gur                        = 400g per 15L

Method of Preparation
1.      Take about 5L urine in a bucket and dissolve 15g powdered soap in it.
2.      Add 400g Gur in it and dissolve fully.
3.      Add it into a sprayer after sieving. Fill the sprayer with rest of urine, shake well and spray 

*Mr Inderjeet  Singh Soholi (phone no. 9915702440) of Punjab used 2 eggs per 15L sprayer in place of Gur and found this recipe useful in killing several different types of weeds. This recipe is not expected to kill Nutgrass (Murk in Punjabi) and Dub-grass (Khabbar in Punjabi).



Appendix V

Special Aurogreen for Broadcast in Standing Crop of Rice (to help following Wheat) or of Wheat (to help following Rice)
1.      Take total of six kg seeds of the following legume crops – Horse gram (Macrotyloma uniflorum, Gahat in Punjabi), Mungbean, Urd, Cowpea, Moth, Masar. Note: one can take about 1 kg of each type. Important: We strongly recommend that if and when needed, purchase these seeds from Grocery shops in the village and not from seed stores. But test germination and used seeds that have more than 80% germination.
2.      Mix all the seeds and add about 200g each of Saunf, Ajwain and Dill (Soi Aku in Telugu, Sava in Hindi, Anethum graveolens).
3.      Soak all the seeds in water, for about four hours. Drain excess water and spread the seeds on a gunny sheet in shade and dry them.
4.      Sprinkle 50 to 100 mL of concentrated cow-urine (see Appendix …  for its preparation) so that all seeds get smeared. Dust these moist seeds with about 500g dry ash (from kitchen) and mix well. The seeds are now ready for broadcasting.
Important: Sowing/broadcasting should be done about one month before harvesting rice (to help the following wheat), or about one month before harvesting wheat (to help the following rice). Braodcasting can be done just before last irrigation to these crops, -- say in September for Rice and in March for Wheat.
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Appendix VI

Gurjal Amrit
Gurjal Amrit is a tested soil health enhancer and plant growth promoter by team members of Kheti Virasat Mission (KVM) in Punjab.  It was innovated by Mr Gupreet Dabrikhana (mobile: 9915195062, e-mail: gurpreet.kvm@gmail.com) of KVM.

Materials:
1.         Fresh Cow dung                           30 kg
2.         Besan (Chane Ka Aata)                01 kg
3.         Bajra (Pearl millet) flour *          0.5 kg
4.         Rock Salt (powdered)                  0.5 kg
5.         Mustard Oil                                             125 mL
6.         Gur                                               1.5 kg
7.         Neem Leaves *                            01 kg
8.         Akk (Calotropis) leaves *             01 kg
9.         Cow Urine                                    2.5 Liter
10.     Water                                          to make 100 Liter of total product
Notes:
·         Farmers in South India may use Raagi in place of Bajra;
·         Preferably use fresh leaves of Neem and Calotropis but after cutting them into smallest pieces.

Method of Preparation
  1. Mix Besan, Pearl Millet flour, Rock Salt and Mustard oil in to 5 kg Cow dung in a small container.
  2. Add this mixture and the remaining 25 Kg Cow dung in a suitable size big drum (eg. 200 liters). Now put all the remaining things like Gur, Neem and Calotropis leaves,  Cow-urine and water in to the drum and mix all the thing with the help of a wooden stick. Keep the drum covered.
  3. Mix the contents twice a day for about 10 minutes every time. Continue the mixing the contents of the drum for 3 days (in summer) to 5 days (in winter) when the mixture will be ready for use.

Method of Use
  • It can be applied to all crops, vegetables or fruit trees. Apply to soil to improve soil health. And use as a spray to enhance plant growth.
  • For soil application, it can be added to irrigation channel at the rate of 200L per acre.
  • For enhancing plant growth, spray-apply after sieving through cloth or strainer. Use at the rate of 2 to 4 liters per spray pump of 15 liters as a plant growth promoter. 

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Appendix VII

Extract of Dry Cowdung (Paathi-Ka-Paani)*

1.      Take a wide mouth container – 100 or 200L barrel, open from top.
2.      Add about 50L of water in the barrel.
3.      Add about 15 kg of one year old cow dung cakes. Let them soaked fully in water for four days. NoteIt may need some weight on top of the Dung Cakes, so that they remain submerged in water.
4.      The resultant liquid when sprayed on crops has been noted to improve crop growth by several farmers in Punjab.
5.      Take about 2L liquid in a 15 L capacity sprayer. Fill it with water. Mix well and spray.

Note: the dung cakes can be dried and used as a fuel.
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* The method was told to farmers by Mr Suresh Desai of Belgaum Karnataka (mobile: 9480448256) during his Punjab travel in 2009.




Appendix VIII

Method of Making Butter Milk as Pest Manager*

1.      Take one L milk (whole milk and not toned milk), boil and cool to room temperature.
2.      Make curd from this milk when temperature is about 35°C, by adding about 20 g good quality curd. Note: Cover the container with woolen cloth during  winter. Otherwise, curd will not set.
3.      Make about 10L Lassi from the Curd. Put the Lassi in a plastic drum. Keep the content for one week.
4.      After one week, add about one foot long copper strip or about one meter long copper wire (after making a spiral). Keep the content for at least 5-days (can be kept even for 7 days).
5.      Lassi will become greenish-blue, and is ready for use.
6.      Dilute the 10L Lassi to about 100L by adding water. Spray the diluted Lassi on crop in one acre area.

* It is a widely known recipe among organic farmers and listed on the website www.sristi.org, and they upload such pieces of traditional knowledge after some validation.
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Appendix IX

Though KVM is promoting Organic Farming But it is open to experiments done by Farmers following Non-Pesticidal Management i.e. sustainable agriculture called Pesticide-Free farming .
Chemical Fertilizers as Pesticide

Fertilizers are widely recommended for soil application. They have been noted and published to adversely affect soil health. Limited research suggests their use as foliar sprays. Foliar spry has been noted to kill some insect-pests (eg. White fly – a sucking pest) by a group of farmers in Jind district of Haryana guided by Dr Surender Dalal, an important issue in organic cotton. Following recipe is the innovation of this group.

Material needed: 2.5kg DAP, 2.5kg urea, 0.5 kg Zinc sulfate (21%),

Method of Preparation
·         Suspend each item in 2L water in separate containers (note: DAP may take 2-days to suspend well).
·         Mix the well suspended materials after sieving. The resultant about 6L material may be sufficient for one acre land when crop is young.
·         Take one L of resultant liquid in a 15 L sprayer, make the volume to 15L and spray.  Note: about 100L liquid may be needed per acre – depending on the age of the crop.


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